आज दान की ज़रूरत मंदिर मस्जिदों से ज्यादा अस्पतालों को है। ज़रा थोड़ा समय निकालकर, धर्म के चोले से बाहर आकर चिंतन मनन करें और अपने गली, मौहल्ले, शहर, गांव, देश और समाज की समस्याओं पर ग़ौर करें । अपने और स्वस्थ समाज के लिए बुनियादी ज़रूरतों पर ध्यान दें, क्योंकि अगर समाज में बुनियादी सुविधायें नहीं होंगी तो ऐसे धर्म, मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरजाघर और सरकारों की क्या ज़रूरत…चेतावानी- यह लेख केवल मर्दों के लिए है ना-मर्द इससे दूर रहें…
मैं तो बस यह कहता हूं कि मेरे जैसे कितने ही लेखक अपनी फालतू की बात लिखते हैं… बस आप इसी तरह पढ़ते रहिए और किसी बाहुबली, पुरुषोत्तम मर्द की कहानी का इंतजार करिये क्योंकि पुरुष की मानसिकता उसे यह सब करने को नहीं कहती बल्कि महिलाओं का पहनावा, उसका कसा हुआ बदन, उसका आचरण एक आदर्श पुरुष को मजबूर कर देता है वर्ना मर्द तो बेचारा गाय है गाय…।
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