शकुतंला क्या नहीं जानती?’
‘कौन? शकुंतला! कुछ भी नहीं जानती।’
‘क्यों साहब? क्या नहीं जानती? ऐसा क्या काम है जो वह नहीं कर सकती?’
‘वह उस गूंगे को नहीं बुला सकती।’
‘अच्छा बुला दिया तो?’
‘बुला दिया!’
बालिका ने एक बार कहनेवाली की ओर द्वेष से देखा और चिल्ला उठी -- दूं दे!
गूंगे ने नहीं सुना। तमाम स्त्रियां खिलखिलाकार हंस पड़ीं। बालिका ने मुंह छिपा लिया।
जन्म से वज्र बहरा होने के कारण वह गूंगा है। उसने अपने कानों पर हाथ रखकर इशारा किया। सब लोगों को उसमें दिलस्पी पैदा हो गई, जैसे तोते को राम-राम कहते सुनकर उसके प्रति हृदय में एक आनंद-मिश्रित कुतूहल उत्पन्न हो जाता है।
चमेली ने अंगुलियों से इंगित किया-फिर?
मुंह के आगे इशारा करके गूंगे ने बताया-भाग गई। कौन? फिर समझ में आया। जब छोटा ही था तब ‘मां’ जो घूंघट काढ़ती थी, छोड़ गई। क्योंकि ‘बाप’, अर्थात् बड़ी-बड़ी मूंछें, मर गया था। और फिर उसे पाला है-किसने? यह तो समझ में नहीं आया, पर वे लोग मारते बहुत हैं।